संसदीय राजभाषा समिति की पृष्ठभूमि
संसदीय राजभाषा समिति, राजभाषा अधिनियम, 1963 में की गई व्यवस्था के परिणामस्वरूप अस्तित्व में आई। उक्त अधिनियम संघ केराजकीय प्रयोजनों के लिए हिन्दी को अपनाने संबंधी संविधान के परिकल्पित पंद्रह वर्ष की अवधि अर्थात 26 जनवरी, 1965 के पश्चात अपनाई जाने वाली संघ की राजभाषा नीति का निर्धारण करने के लिए बनाया गया था। अधिनियम की धारा 4 (1) में व्यवस्था है कि उक्त अधिनियम की धारा 3 के प्रवृत्त होने की तारीख (अर्थात 26 जनवरी, 1965) के दस वर्ष की समाप्ति के पश्चात राजभाषा समिति गठित की जाएगी। तदनुसार जनवरी, 1976 से संसदीय राजभाषा समिति का गठन अधिनियम के उपबंधो के अनुसार किया गया। समिति को सौपे गए कर्तव्य हैं – संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए हिंदी के प्रयोग में की गई प्रगति का पुनर्विलोकन करना और उस पर सिफ़ारिशें करते हुए राष्ट्रपति को प्रतिवेदन करना। तदुपरान्त, राष्ट्रपति उस प्रतिवेदन को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखेंगे तथा सभी राज्य सरकारों को भिजवाएंगे।
अपने कार्य को सुचारु रूप से निष्पादित करने और उसे सही दिशा प्रदान करते हुए प्रतिवेदन देते समय समिति के लिए यह आवश्यक है कि वह राजभाषा के संबंध में संविधान के उपबंधों, राष्ट्रपति द्वारा समय-समय पर दिए गए आदेशों, राजभाषा के संबंध में गठित खेर आयोग तथा पंत समिति की सिफ़ारिशें, राजभाषा अधिनियम तथा नियमों और संसद द्वारा पारित संकल्प आदि के बारे में भी एक संक्षिप्त विवेचन कर लें।
जिस तारीख को धारा 3 प्रवृत्त होती है उससे दस वर्ष की समाप्ति के पश्चात, राजभाषा के सम्बन्ध में एक समिति, इस विषय का संकल्प संसद के किसी भी सदन में राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी से प्रस्तावित और दोनों सदनों द्वारा पारित किए जाने पर, गठित की जाएगी।
इस समिति में तीस सदस्य होंगे जिनमें से बीस लोक सभा के सदस्य होंगे तथा दस राज्य सभा के सदस्य होंगे, जो क्रमशः लोक सभा के सदस्यों तथा राज्य सभा के सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा निर्वाचित होंगे।
राष्ट्रपति उपधारा (3) में निर्दिष्ट प्रतिवेदन पर और उस पर राज्य सरकारों ने यदि कोई मत अभिव्यक्त किए हों तो उन पर विचार करने के पश्चात् उस समस्त प्रतिवेदन के या उसके किसी भाग के अनुसार निदेश निकाल सकेगा। परन्तु इस प्रकार निकाले गए निदेश धारा 3 के उपबन्धों से असंगत नहीं होंगे।